(हम्द़े बारी त़आला)
नसीबों का मालिक
ये क़ाएनाते दुनिया का ख़ालिक़,
के हर शै उसी की तरफ़दार है,
ओ अल्लाह राज़िक ,
ओ अल्लाह राज़िक,
दिया जिसने है चांद को चांदनाई,
उसी की ही क़ुदरत़ से
सूरज ने भी चमक पाई,
ओ अल्लाह राज़िक ,
ओ अल्लाह राज़िक,
है श़म्सो क़मर मे उसी की ही क़ुदरत़,
है जबलो समंदर मे उसकी हुक़ूमत,
किया जिसने है हर शै को है रौश़नाई
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
जहां मे वो हमको ना पैदा करता अगर,
क्या होते ये दरिया समंदर मगर,
ये उसकी मेहरबानी एहसान है ,
जो हमको बनाया अफज़ल इनसांन है,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
उसी की ही नियाँमत का मश़कूर हूँ मैं,
उसी के रहेम का तलबगार हूँ मैै,
ख़ताकार हूँ मै सियाकार हूँ मै,
मै बंदा हूँ तेरा सज़ावार हूँ मैं,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
मुझे और मेरे माँ बाप को बख़्श दे,
तु अपने शा़ने रहीमी के सदके़,
के करदे करीमी ये उम्म़त पे शा़ने करीमी के सदके़ ,
मुस़ीबत ज़दा क़ौमो का सहारा बना दे,
कोई हमदर्द़ जहां मे हमारा बना दे,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
अमन हो वत़न मे मेरे चारो सू,
के ख़ुश्बू मोहब्बत़ की हो गर्दो बू,
जहां मे वत़न का ये ऐजाज़ हो,
के जहां भी रहे आरिफ सर पेे ये ताज हो,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
✍मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी
ये क़ाएनाते दुनिया का ख़ालिक़,
के हर शै उसी की तरफ़दार है,
ओ अल्लाह राज़िक ,
ओ अल्लाह राज़िक,
दिया जिसने है चांद को चांदनाई,
उसी की ही क़ुदरत़ से
सूरज ने भी चमक पाई,
ओ अल्लाह राज़िक ,
ओ अल्लाह राज़िक,
है श़म्सो क़मर मे उसी की ही क़ुदरत़,
है जबलो समंदर मे उसकी हुक़ूमत,
किया जिसने है हर शै को है रौश़नाई
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
जहां मे वो हमको ना पैदा करता अगर,
क्या होते ये दरिया समंदर मगर,
ये उसकी मेहरबानी एहसान है ,
जो हमको बनाया अफज़ल इनसांन है,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
उसी की ही नियाँमत का मश़कूर हूँ मैं,
उसी के रहेम का तलबगार हूँ मैै,
ख़ताकार हूँ मै सियाकार हूँ मै,
मै बंदा हूँ तेरा सज़ावार हूँ मैं,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
मुझे और मेरे माँ बाप को बख़्श दे,
तु अपने शा़ने रहीमी के सदके़,
के करदे करीमी ये उम्म़त पे शा़ने करीमी के सदके़ ,
मुस़ीबत ज़दा क़ौमो का सहारा बना दे,
कोई हमदर्द़ जहां मे हमारा बना दे,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
अमन हो वत़न मे मेरे चारो सू,
के ख़ुश्बू मोहब्बत़ की हो गर्दो बू,
जहां मे वत़न का ये ऐजाज़ हो,
के जहां भी रहे आरिफ सर पेे ये ताज हो,
ओ अल्लाह राज़िक,
ओ अल्लाह राज़िक,
✍मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी
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