(काट दो नफ़रतों की श़ाख़े वत़न के प्यारो)

क़ानून को ताक़ पर रख किये थे क़त्लो ग़ारद जो
वही अब कह रहे हैं हम नया भारत बनाएंगे 


हुक़ूमत देख कर अपनी समझ बैठे है कुछ ढोग़ी
ये भारत मुल्क़ है उनका जहां सिक्क़ा वो बस अपना चलाएंगे


नही थी कोई आज़ादी की मुह़िम उनके क़बीले मे
वो फ़िर भी कह रहे हम कारवां अपना यूहीं बढ़ाएगें


किया बद़नाम भारत को गिरा कर बाबरी ढांचा
वो फ़िर से कह रहे हम वहीं मंदिर अपनी बनाएंगे


लहू के ख़ून से सीचां है वत़न को जिस मुसलमां ने
उन्हें ग़द्द़ार कह कर के वो भारत से भगाएगें


किया है सब्ऱ हमने भी वत़न मे अद़ावत़ देख कर इनकी
ये ज़ुल्मत का अधेंरा हम बहोत जल्दी मोहब्बत़ से मिटाएगें


जो हमदर्द़ी हुक़ूमत को है वत़न से तो चलें सब धर्मोंं को साथ मे लेकर मोहब्बत़ फ़िर बढ़ेगी और हर ग़िले श़िक़वे दूर हो जाएगें


है ये बस आरज़ू इतनी के आरिफ़ की ख़ोदा तुझ से
मै कहींं भी रहूँ वत़न मेरा सलामत़ हो ख़ुशी के त़राने गुनगुनाएँगे



 ✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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