(इनसांनियत से मोहब्बत़)

हुक़ूमत हो किसी की भी कैसी परवाह ना करे चाहे हो गर्दिशे़ ज़ुल्मत

वही जांबाज़े सिपाह़ी असल मे कौ़मो मिल्लत़ के सरताजो सरद़ार बनते है

✍मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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