(आखेँ खोलो और सच्चाई से सामना करो हक़ हमेशा़ ग़ालिब रहेगा)

गांव नगर बस्ती श़हेरो की मस्जिदें ख़ाली रहती है हमेंश़ा नमांज़ियो से तो श़ायद रह जायेंगे ज़रा सोचों

नमाज़ी हो ना हो नमाज़ पढ़े या ना पढ़े कोई मगर हमने तो यह क़सम ख़ाली है ना के मस्जिद वही बनायेंगे
   


इस्लाम अम़न का दीन है और जिस्का मक़सद ही है सिर्फ़ अम़न को हासिल करना इनसांनियत से

हम हर ज़ुल्मों नफ़रत का जवाब दुश़्मनो को मोहब्बत़़ से देकर भारत मे इनसांनियत को हर तरह से बचाएंगे



 कितने मर गये है मर रहे है और मर जायेंगे ऐक दिन तड़प कर ये भी भूख़े नंगे सियासत मे रियासत के पुजारी ज़ालिम

कौन लेकर गया है और क्या वो लेकर के जायेंगे बुराई का नतीजा बस बुरा है जिसका फल बहोत जल्द हर हाल पाऐंगे



और कर रहे है ध्रहमो-भ्रहम भारत की सक़ाफ़त मोहब्बत़़ भाई चारे को करा कर फूट कुछ सांप्रदायिक ताक़ते बस यूँही

वोटों के लालच मे कुछ पाख़ंडी नेता भारत की ऐकता अखंण्डता को आख़िर कब तलक यूँही इस तरह से चूना लगाएंगे



छोड़ दो मुसलमानों वो जगह क्योंकि बना दिया है विवादित चुनांवी मुद्दा कुछ ज़ालिमों ने अपने वोटों के ख़ातिर गिरा कर बाबरी मस्जिद

क्या रोती माँऐ सुनसान बस्ती ख़ामोश़ सड़के सूनी राहे और मासूम लाश़ो की सीड़ी पर से होकर के हम मस्जिद मे जाऐंगे



मुझे भी बहोत तक़लीफ़ है आरिफ़ उस यौमें असवत पर जोके हो सकता नही किसी भी हाल सूरत मे बयां

रहेगी जब तलक दुनिया वो ज़ुल्मों ज़्यादती का मंजर वो दिन बारा दिसंबर का श़हीदे बाबरी मस्जिद तुझको नहीं हम भूल पाऐंगे


दिखा दो गर मोहब्बत़़ है अल्लाह और रसूल आक़ा से तो भारत की सारी मस्जिदों मे ये ज़ौक़े श़ौक़े जज़्बाते नमाज़ें पाबंदीं अभी

ये मेरी है दोआ के राज़ी होगा रब हमसे और होंगे बर्बाद ना मुराद ज़ालिम सब के सब जब सब्र अमनों मोहब्बत़़ भाई चारे का पैग़ाम हम जहां भर को दिखाऐंगे



              ✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी



Comments

Unknown said…
Absolutely you are right bro