[ज़ालिम हुक्मरान, ग़ाफ़िल अवाम]

एहसासे ज़माना क्या कहिये अंजाम की कोई परवाह़ ही नहीं

मसनद़ पे है क़ब्ज़ा ज़ालिम का मज़लूम का कोई रह़बर ही नहीं

आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम, इलाहाबादी

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