[फ़िक्र ही मोहब्बत़ है]

बदस्त़ूर निज़ामे मोहब्बत़ को निभाते चले गये
ख़ुद रोए दिल मे अपने उनको हसांते चले गये


मालूम ना होने दिया कुछ अपने दिल का ग़म
हर लम्हां ज़ख़्म दिल का उनसे छुपाते चले गये


दिल की कसक थी रह गई इस दिल के दरमियांन
तूफ़ानों की ज़द में ख़ुद को उड़ाते चले गए


आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम, इलाहाबादी


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