(ज़िन्दगी का हक़ीक़ी सच)

ख़ुशी हो या ग़म आरिफ़ दोनों ही मे हमारी नाज़ उठायी जाती

है कभी दूल्हा बनाया जाता है तो कभी मय्य़त सजाई जाती है


✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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