(लालची लोगों का सौद़ा है ख़ुद्दारी जिसे बेच कर कामयाब होते है वो)

तलवे चाटने की आदत नही अपनी किसी साहूकार की जनाब़ नही तो कब के संवर जाता

सच बोलता हूँ मै साहब कोई झूट नही ज़मीर अपना बेंचा होता तो कबके अमीर बन जाता


मेहनतकश़ी और फ़राख़ दिली मेरी फ़ितरत मे है आरिफ़ हरामख़ोरी मुझे आती नही

सच्चा हूँ इमांनदारी से कमाता हूँ जो ये ख़ुद्दारी जाती नही ये बिका होता तो मै कबके मर जाता




          ✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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