[ग़ुरुर अना ऐक काग़ज़ की नाव की तरह है]

जो दरिया चलती है अपने ग़ुरुरो अना के जोश़े जवानी में वो खो देती है अपना नामों निश़ा मिलकर समंदर के पानी में आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम,इलाहाबादी

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