[अप्रैल फ़ूल ऐक जाहिलाना परंपरा है]

ये अप्रैल फ़ूल क्या है सारा जहां ये क्यों मनाता है
जो ख़ुश़ियां दे नहीं सकता उसे कोई क्यों सजाता है


जो देता है दिलों में शक़ की गुंजाइश़ बिना मतलब ज़माना फ़िर भला कैसे दिलों में तस्कीन(सुकून)पाता है

मुझे तो कोई रग़बत(लगाव)ही नहीं एैसी फ़हश़ी(गंदी) सक़ाफ़त(परंपरा)से

भला जो कर नहीं सकती सक़ाफ़त(परंपरा)किसी का तो ये कोई क्यों निभाता है

आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम,इलाहाबादी

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