[तफ़कीरे ग़म]

दिल जला कर जागा रातों को मैं चराग़ो की जगह

ज़िन्दगी की श़मां ही ख़ामोंश़ हो गई सुबह होते होते


✍️मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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