[हमारे दीन मज़हब की पहचान इन्सानियत मोहब्बत]


मत पूछिए हमसे हमारा दीन कैसा है
हमारा धर्म मज़हब भी मेरे ईमान जैसा है

सदाक़त का सलीक़ा हमसे है सीखा सारे आलम ने
मोहब्बत करके दिखला दी जहाँ में प्यार कैसा है

मेरे अस्लाफ़ ने दी है अद़बो इल्म की समझदारी
जो मेरे हुस्ने ख़्लाक़ के म्यांन में तलवार जैसा है

ख़ोदा के फ़ज़्ल ने बख़्श़ी ऐसी फ़ौक़ियत अपनी
मेरा आद़ाब है जैसा जहाँ में मेरा ऐजाज़ वैसा है

किया बद़नाम है हमको जहां में कुछ सेयासत ने
वर्ना मेरे अक़्वाल के जैसा मेरा आमाल वैसा है


            आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम, इलाहाबादी





Comments