[ बचपन की यादें ]
मुझे बचपन का वो गुज़रा ज़माना याद आता है
वो नन्हें हाथों का ऐक आशियाना याद आता है
पुराने दिन की बातें थी साथी
दुलारे यार रहते थे कहां वो खो गया बचपन जहां हम साथ रहते थे
वो प्यारा बचपना सबका वो भोली भाली सी सूरत
वो भोली सूरतों में भी हम बहोत शैंतान होते थे
नदी तालाबों में भी हम खेलते थे साथ में मिलकर
वो प्यारा बचपना खेलें लड़े भी साथ में होकर
ना हम्मे धर्म की बातें ना हम्मे ज़ात का मसला
फ़क़त ऐक बात होती थी जो हम्मे खेल का मसला
ना उनमें हिंदू होता था उनमें ना कोई भी मुस्लिम
मगर हर खेल बचपन का मज़ा बारिश की हो रिमझिम
जवां मै हो गया लेकिन अभी कुछ यादें बाक़ी है
जो आंसू आंखों में लाकर मुझे हर दम रोलाता है
मुझे बचपन का वो गुज़रा ज़माना याद आता है
वो नन्हे हाथों का एक आशियाना याद आता है
आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम,इलाहाबादी
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