[इनसांन और उसकी तकलीफ़ के असबाब समझो]

किस्से अपना दर्द कहूँ सब चेहरे अनजाने है
कौन सुनेगा अपना दुख सबके यही फ़साने है

सोने-चांदी की क़ीमत तो इनसांनों से भी ज़्यादा है
यहां भूख़ा इन्सा ख़ाने को बस दो रोटी में बिकतें है

इनसांन बचा है नाम का बस के नाम ही बस इनसांनी है
धोखेबाज़ी की ठानी है हर काम में अब बेईमानी है

अफ़सोस करे तो क्या हासिल तुम वक़्त से अब ताऊन करो इनसांन बनों पहले इनसांन बनों दौलत तो आनी-जानी है

आरिफ़ मोहम्मद इब्राहिम, इलाहाबादी



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