(दिल के आग के श़ोले ज़ुबाँ पर देखो)

बात मेरी मोक़म्मल कहां हुई है आरिफ़ ज़माने को मोक़म्मल ज़रा पूरी बात होने दो

ये महफ़िल है श़ोअराओ की अपने कलाम पेश़ करने की अभी दिन ढला है बस थोड़ी श़ाम होने दो


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कुछ मोख़लिफ़ लोग भी होंगे श़ायद इस महफ़िल मे और कुछ हमदर्दो हमनवां भी मेरे

मेरे तक़रीर  के मौज़ू का आग़ाज और श़रूआत है ये तो अभी फ़क़त बस इख़्तेतामे अंजाम होने दो
                           

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रसूख़ वाले तो बहोत देखे है दुनिया मे मगर नही देखा मग़रूर मोहकम तेरे जैसा बद़नसीब ज़ालिम कही

पड़ा लक़वा हुक़ूमत को जब कटी लाश़े लुटी अस्मत वत़न के सीनों पर हो रहे हज़ार घाव तो बस बेश़ुमार होने दो

                   
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ये कैसी है सेयायत धर्म मज़हब की वत़न मे और ये कैसा हौलनाक़ मंजर है के पड़ा है हर धर्म ख़तरे मे

किया सबने फ़िक्र अपने तंजीमों की नाकी वत़न के भाई चारे की फ़सादी कर रहे है इज़्ज़त पामल भारत की तो बस पामाल होने दो
       
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कोई हिन्दू बताता है ख़ुद को भारत का बेटा हुँ मै तो कोई मुस्लिम बताता है हूँ मै श़ेरे लाडला भारत का

मगर अफ़सोस के ऐक माँ के बेटे और लाडले होकर भी वो अपनी माँ के कोख़ को कर रहे है बद़नाम तो बस बद़नाम होने दो
                         
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जो लेते हो श़पथ तुम तो क़ुरआ़न गीता पर हांथ रख कर के तो क्या ये भूल जाते हो के लिया है  मुस्तक़बिल बनाने मे सारे मुल्क़ का ज़िम्मा


 ये नेताओं की हक़ीक़त है धर्म नस्लों भेदभाव मे जनता को फ़सा कर आपस मे लगा कर गुमराहीयत का ठप्पा दंगा किसी और से बद़नाम कोई और हो तो इल्ज़ाम किसी और पे होने  दो
                 
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हुई सस्ती इनसांनो की जाने बढ़ी क़ीमत हैवानों की जब से जहां मे एैसा नज़राना कोई किसी को कोई दे नही सकता जो मिलता है भारत के सेयासी कट्टरपंथी ख़ेमों मे हर दम


इसी धर्म और मज़हब के बटवारे को ये सेयासी लोग अपना ताज कहते है जो बिक सकता नही पर तोड़ा ये आसानी से जाता है कभी मंदिर के नामों से कभी मस्जिद के नामों पर और कभी गाये पर भी ये करे सरे आम कोह़राम तो ये कोह़राम होने दो
                   
               
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               ✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी





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