(ज़िन्दगी के सफ़र की हक़ीक़त)

ज़िन्दगी जी एैसे रहे है हम जैसे कभी मरना ही नही
और मर एैसे जाते है हम जैसे कभी जिया ही नही

ख़्वाबों ख़्यालो मे कट कर रह गई आरिफ़ ज़िन्दगी की तम़ाम रातें अपनी
काम बहोत कुछ अधूरे है ज़िन्दगी के जिसे कभी पूरा किया ही नही

उम्र सारी कट गई इन हाथों से दौलत़ कमाने मे अपनी
बादे वफ़ात हो गई तक़सींम मालो ज़र भाई बच्चों मे मगर
इन ख़ाली हाथों को तो कुछ भी  मिला ही नही

प्यार मोहब्बत़ और ख़ुश़ीयों की सौग़ात जब आईं सामने अपने तो इस बेवफ़ा ज़िन्दगी को फ़िर ऐक लम्ह़े की भी मोहलत़ मिला ही नही


                ✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी 

Comments