(रियासत मे सियासत के मक्कार)

मेरी पर्ख़ी हुई नज़रो को जाने क्यों एैसा लगता है आरिफ़

हमारे बीच ही कोई प्यारा बनकर के धोख़ा दे रहा हमको


✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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