(तक़्दीर वक़्त से आती है वक़्त तक़्दीर से नही)

कुछ फैसले लोग जज़्बात मे कर लेते है तक़्दीर को छोड़ वक़्त की अहमियत़ को जान कर

मगर तक़्दीर का लिखा किसने देखा है वो तो किसी को कुछ नही देता पहचान कर

✍ मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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