(मासूम़ दिल अंजान था)

जिस पर फख़्र और ऐते़माद़ था मुझे हमेश़ा से हर तरह के राह़े सफ़र मे आरिफ़

मगर अफ़सोस है के वही सरे राह मुझे तड़पता हुआ अकेला छोड़ गया
   


        ✒ मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी



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