(क़यामत़ का दिन)

क़यामत़ टूट पड़ती है उस रोज़ जिगर छलनी हो जाता है

कोई बाप जब जवान बेटे का जनाज़ा अपने काधें पर उठाता है

✒मोहम्मद आरिफ़ इलाहाबादी

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